सूचना प्रौद्योगिकी के युग में तीव्रता से सम्पूर्ण विश्व एक वैश्वीकृत ग्राम का रूप धारण करता जा रहा है। इन बदलती हुई परिस्थितियों ने मानव समाज के सम्मुख अनेक चुनौतियों को उत्पन्न किया है। हमारा समाज भी इन चुनौतियों से अछूता नहीं है। भूमण्डलीकरण के वर्तमान परिदृश्य में हमारे सामाजिक एवं राष्ट्रीय जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में मूल्यों एवं मान्यताओं में अभूतपूर्व परिवर्तन हो रहा है। परम्परागत मूल्यों एवं मान्यताओं में परिवर्तन का प्रभाव शिक्षा तथा विशेष रूप से उच्च शिक्षा पर पड़ा है। शिक्षा मानव व्यक्तित्व के निर्माण में विनियोजन, तथा व्यक्ति के माध्यम से समाज एवं राष्ट्र के निर्माण एवं विकास की आधारशिला है। सर्वमान्य सत्य है कि ज्ञान-विज्ञान तथा वैश्वीकरण के इस दौर में एक शक्तिशाली एवं सर्वांग विकसित राष्ट्र के निर्माण में सर्वाधिक निर्णायक भूमिका शिक्षा जगत की ही है। इन्हीं उच्चादर्शों की पूर्ति के लिये यह अपेक्षित एवं अपरिहार्य है कि समाज के युवा वर्ग को शिक्षण एवं प्रशिक्षण द्वारा उच्च कोटि का समाजोपयोगी प्राणी बनाया जाय। ऐसे में उच्च शिक्षा जगत की महत्वपूर्ण भूमिका स्पष्ट रूप से दृष्टिगोचर होती है। यहाँ पर यह स्वीकार करना अप्रासंगिक न होगा कि इस मार्ग में अनेक प्रतिकूलताएं एवं सीमायें विद्यमान है, परन्तु उच्च शिक्षा विभाग से राष्ट्र एवं समाज की अपेक्षायें निरन्तर बढ़ रही है। इन चुनौतियों का सामना करने तथा उच्च शिक्षा को सर्वसुलभ बनाने की सरकार की मंशा की पूर्ति के लिये उच्च शिक्षा विभाग कृत संकल्प है।
प्रदेश के चहुमुखी एवं नियोजित विकास में उच्च शिक्षा का अत्यन्त महत्वपूर्ण एवं विशिष्ट स्थान है। उच्च शिक्षा का विकास वर्तमान में विद्यमान आवश्यकताओं एवं भविष्य की सम्भावनाओं तथा सामाजिक अपेक्षाओं के आलोक में किया जाना है। आज उच्च शिक्षा मात्र सीखने व जानने का उपक्रम अथवा मनुष्य के मानसिक एवं बौद्धिक धरातल पर होने वाली जानकारियों-सूचनाओं के आदान-प्रदान तक ही सीमित नहीं है, वरन् सुयोग्य, सुसंस्कृत एवं उत्कृष्ट चरित्रधारी प्रबुद्ध पीढ़ियों का निर्माण भी उच्च शिक्षा का प्रमुख दायित्व है। अध्ययनरत छात्र-छात्राओं में समता, समरसता, धर्मनिरपेक्षता, परकल्याण, राष्ट्रनिर्माण, सामाजिक कुरीतियों का परित्याग आदि उच्चादर्शों के विकास के अभाव में शिक्षा अपूर्ण है।
इसी के सापेक्ष्य में दृष्टिगत निम्नलिखित महत्वपूर्ण बिन्दुओं को सर्वोपरि महत्ता प्रदान करना सर्वमान्य रूप से स्वीकार किया गया है:-
- विश्व के विभिन्न हिस्सों में अवस्थित उच्च शिक्षा के केन्द्रों एवं संस्थानों के नवीनतम शोध परिणामों से ज्ञान की प्राप्ति एवं उसका संवर्द्धन करना।
- नवीनतम ज्ञान से संपुष्ट होकर मानव जीवन के विभिन्न पक्षों को मार्गदर्शन एवं नेतृत्व प्रदान करना।
- बौद्धिक विकास की ओर अग्रसर युवा शक्ति में परम्परागत नैतिक एवं चारित्रिक गुणों तथा मूल्यों का संवाहक बनकर सुसंस्कृत एवं प्रबुद्ध युवा शक्ति का निर्माण करना।
- आधुनिक ज्ञान-विज्ञान की सहायता से सामाजिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक असंतुलन को कम करने का प्रयास करके बंधुत्व, समानता एवं सामाजिक न्याय जैसे मूल्यों को आत्मसात करते हुये लोकतांत्रिक संस्थाओं में दृढ़ आस्था रखने वाले जागरूक एवं राष्ट्र समर्पित नागरिक तैयार करना।
- व्यक्ति और समाज के सर्वांगीण विकास हेतु अपेक्षित मान्यताओं एवं मूल्यों का परीक्षण तथा राष्ट्रीय चरित्र का संवर्द्धन एवं सम्पोषण।
स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् उच्च शिक्षा का प्रसार तीव्र गति से हुआ है जिसके फलस्वरूप विश्वविद्यालयों एवं महाविद्यालयों की संख्या में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। लोक कल्याण के निमित्त प्राथमिकता के आधार पर अविकसित तथा पिछड़े क्षेत्रों में विश्वविद्यालयों तथा महाविद्यालयों की स्थापना की गयी है। शासन का प्रयास है कि बदलते हुये परिवेश में समाज का संतुलित विकास एवं उसके विभिन्न अंगो के मध्य पारस्परिक सामंजस्य की स्थिति को सुनिश्चित करने के लिए शैक्षिक संस्थाओं के गुणात्मक विकास पर बल दिया जाय, ताकि राष्ट्र निर्माण के बेहतर लक्ष्य की सिद्धि हो सके। इन आदर्शों को साकार करने की दिशा में शासन द्वारा यह प्रयास किया जा रहा है कि प्रदेश के उच्च शिक्षा के संस्थानों में आधुनिकतम संसाधनों से परिपूर्ण उच्च कोटि की शिक्षण व्यवस्था उपलब्ध हो, साथ ही शासन द्वारा इस बात पर भी विशेष बल दिया जा रहा है कि छात्र/छात्राओं को व्यावसायपरक शिक्षा प्रदान की जाय जिससे उच्च शिक्षित प्रदेश का युवा वर्ग स्वावलम्बी बन सके और देश की समृद्धि एवं उन्नति में अपना अमूल्य योगदान दे सके। वर्तमान समय में शासन विशेष सक्रियता के साथ सन्नद्ध होकर सुयोग्य प्राध्यापकों की नियुक्ति, भवन निर्माण/विस्तार, समृद्ध पुस्तकालय, सुसज्जित प्रयोगशाला तथा महाविद्यालयों के कम्प्यूटरीकरण जैसे कार्यों पर विशेष ध्यान दे रहा है। दूसरी ओर प्राथमिकता के आधार पर असेवित क्षेत्रों में महाविद्यालयों की स्थापना किये जाने के सिद्धान्त को क्रियान्वित किया जा रहा है।